Meerut news : कर्ज लौटाने से बचने और सरकारी सहायता लेने के लिए कुछ लोगों ने ऐसा जाल बुना कि ट्रायल कोर्ट भी मामले को नहीं समझ सकी। इन लोगों ने अपनी ही 100 साल की दादी के दुष्कर्म और हत्या के लिए एक व्यक्ति को फंसा दिया। ट्रायल कोर्ट ने इस व्यक्ति को उम्रकैद की सजा सुना दी। मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो हत्यारोपी को दोषमुक्त किया गया। मामला मेरठ का है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 100 वर्षीय महिला के हत्यारोपी को बरी करते हुए कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि महिला की मृत्यु किसी अन्य चोट के कारण नहीं बल्कि सेप्टीसीमिया के कारण हुई थी।
सरकार से हासिल किए 8.25 लाख रुपये
ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर पर किसी बाहरी चोट का निशान नहीं पाया गया, जिससे दुष्कर्म की पुष्टि होती हो। कोर्ट ने आगे पाया कि आरोपी के खिलाफ यौन अपराध और हत्या के आरोप केवल सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए लगाए गए हैं। यह विश्वसनीय तथ्य है कि शिकायतकर्ता ने सरकार से पैसे लेने के लिए आरोपी को झूठा फंसाया है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि अभियोजन पक्ष के एक गवाह ने अपने बयान में यह स्वीकार किया था कि उसकी दादी फुल्लो देवी की मृत्यु के बाद मेरे पिता और उनके तीन भाइयों ने सरकार से 8.25 लाख रुपए प्राप्त किए थे।
ट्रायल कोर्ट ने दी थी उम्रकैद
न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने अंकित पुनिया द्वारा दाखिल आपराधिक अपील पर विचार करते हुए ये आदेश दिया। अंकित को मेरठ की ट्रायल कोर्ट द्वारा आईपीसी की धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था। शिकायतकर्ता शनि कुमार के अनुसार उनकी 100 वर्षीय बीमार दादी अपने घर के बरामदे में खाट पर आराम कर रही थीं। शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी पास के कमरे में थे। अपनी दादी की आवाज सुनकर दोनों बरामदे में जब आए तो उन्होंने आरोपी और दो अन्य ग्रामीणों को अपनी दादी का यौन उत्पीड़न करते हुए पाया। जांच और मेडिकल रिपोर्ट द्वारा आरोपी को दोषी करार देते हुए ट्रायल कोर्ट ने उसे सजा दे दी।
हाइकोर्ट ने किया निर्णय खारिज
अपीलकर्ता ने सजा को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दाखिल की, जिस पर बहस के दौरान अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ता ने आरोपी से 1 लाख रुपए कर्ज लिया था। कर्ज लौटाने से बचने और सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के प्रयास में शिकायतकर्ता ने आरोपी के खिलाफ झूठा मामला गढ़ा है। इसके अलावा कोर्ट को यह भी बताया गया कि घटना के समय शिकायतकर्ता अपनी पत्नी के साथ गाजियाबाद में रह रहा था, इसलिए वह घटना का चश्मदीद गवाह नहीं हो सकता है। अंत में कोर्ट ने पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के बयान को ध्यान में रखते हुए निष्कर्ष निकाला कि वृद्ध महिला के शरीर पर संक्रमित घाव के अलावा कोई अन्य चोट नहीं थी। अतः यह कहा जा सकता है कि मृतिका की मृत्यु सेप्टीसीमिया और वृद्धावस्था के कारण हुई थी। इसमें आरोपी की कोई भूमिका नहीं है, इसलिए कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोष सिद्धि के आदेश और निर्णय को रद्द कर दिया।