नई दिल्ली। जीपीआर तकनीक बिना तोड़फोड़ जमीन के नीचे का सच सामने लेकर आएगी।
एएसआई के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में वैज्ञानिक सर्वेक्षण में इस्तेमाल की जा रही ‘जीपीआर’ प्रौद्योगिकी बिना तोड़फोड के यह पता लगाने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि मस्जिद के नीचे कोई संरचना दबी हुई है या नहीं। जमीन के अंदर की तस्वीर लेने वाली रडार प्रौद्योगिकी ‘जीपीआर’ की मदद से सर्वेक्षण किया जा रहा है।
वाराणसी में एएसआई ने शनिवार को दूसरे दिन ज्ञानवापी परिसर में वैज्ञानिक सर्वेक्षण का काम शुरू किया। ज्ञानवापी परिसर में वैज्ञानिक सर्वेक्षण यह तय करने के लिए किया जा रहा है कि 17वीं शताब्दी में बनी इस मस्जिद का निर्माण एक हिंदू मंदिर के ढांचे के ऊपर तो नहीं किया गया है। एएसआई के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बी.आर. मणि ने बताते हैं कि जीपीआर प्रौद्योगिकी में कुछ विशेष प्रकार के उपकरण शामिल होते हैं। इन उपकरणों को जमीन पर रखा जाता है और विद्युत चुम्बकीय तरंगों को जमीन के नीचे उप-सतह स्तर पर भेजा जाता है। ये तरंगें ईंट, रेत, पत्थर और धातुओं जैसी किसी भी चीज के संपर्क में आती हैं और इसे एक मॉनिटर पर रिकॉर्ड किया जाता है। विशेषज्ञ इसका अध्ययन करके पता लगाते हैं कि जमीन के नीचे कुछ ठोस वस्तु मौजूद है या नहीं।
मणि ने कहा, ज्ञानवापी परिसर में जीपीआर सर्वेक्षण से यह साबित हो जाएगा कि मस्जिद के नीचे कोई ढांचा दबा हुआ है या नहीं और अगर है तो वह किस तरह का ढांचा है। उन्होंने कहा कि जीपीआर प्रौद्योगिकी बिना तोड़फोड के जमीन के नीचे का सर्वेक्षण करने के लिए सबसे अच्छी तकनीक है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण में उप-सतह या दबी हुई वस्तुओं या संरचनाओं को समझने के लिए मैग्नेटोमीटर, रेडियोमीटर, फ्लक्सगेट सेंसर और रिमोट सेंसिंग जैसे विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय से हरी झंडी मिलने के बाद एएसआई की एक टीम कड़ी सुरक्षा के बीच शुक्रवार सुबह ज्ञानवापी परिसर में दाखिल हुई थी और सर्वेक्षण कार्य शुरू किया था। शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने भी सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। हालांकि, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एएसआई को सर्वेक्षण के दौरान परिसर में किसी भी तरह की तोड़फोड़ की कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया था।