इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिवास प्रमाण पत्र (डोमिसाइल सर्टिफिकेट) के अस्वीकरण के मामले में कहा कि केवल इस आधार पर चयन और संबंधित प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकता है कि दस्तावेज चयन के बाद जमा किए गए हैं। दरअसल याची ने अधिवास प्रमाण पत्र चयन के समय न देकर चयन के बाद जमा किया और उक्त प्रमाण पत्र में उसके आवास के बारे में गलत जानकारी पाई गई।
याची का विवाह बस्ती जिले में रहने वाले व्यक्ति के साथ हुआ था और प्रमाण पत्र में उसके मायके का पता गांव सेहुड़ा, संत कबीर नगर अंकित था। हालांकि याची के अधिवक्ता ने बताया कि याची कुछ विवादों के कारण अपने माता-पिता के साथ रह रही थी, इसलिए उसके प्रमाण पत्र में मायके का पता अंकित है। याची उक्त जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षामित्र के रूप में नियुक्त थी। एक कथित शिकायत के आधार पर उसके द्वारा 13 दिसंबर 2005 को प्रस्तुत अधिवास प्रमाण पत्र को सत्यापित करने के लिए एक जांच शुरू की गई।
इस न्यायालय के पूर्व पारित आदेश के अनुसार जिला कलेक्टर, संत कबीर नगर ने उसके मामले पर विचार किया और माना कि अधिवास प्रमाण पत्र गलत तरीके से जारी किया गया था, साथ ही चयन की प्रक्रिया में भी कुछ विसंगतियों का संकेत मिला, जिसके कारण 27 अक्टूबर 2006 के आदेश द्वारा याची का चयन रद्द कर दिया गया। उपरोक्त आदेश को वर्तमान याचिका द्वारा चुनौती दी गई, जिसमें एक अंतरिम आदेश पारित कर कोर्ट ने उक्त विवादित आदेश पर रोक लगा दी। मालूम हो कि अंतरिम आदेश अभी भी जारी है।
अंत में कोर्ट ने कहा कि वर्तमान याचिका 2006 से लंबित है और इस न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश के अनुपालन में याची अभी भी शिक्षामित्र के रूप में कार्य कर रही है, क्योंकि याची का विवाह 1991 में हुआ और गौने की रस्में पूरी होने के बाद वह अपने वैवाहिक घर में रहने भी लगी, लेकिन प्रस्तुत प्रमाण पत्र में उसके मायके का पता दर्ज है, जिसके कारण उक्त प्रमाण पत्र गलत माना गया। कोर्ट ने यह भी पाया कि याची पिछले 17 वर्षों से कार्यरत है और कोर्ट के अंतरिम आदेश का लाभ उठा रही है, इसलिए उसकी आजीविका को परेशान करना न्याय के हित में नहीं होगा। अतः न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेर की एकलपीठ ने पार्वती गुप्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए उसकी सेवा नियमित रखने का निर्देश दिया।